गजल

नहीं है मंजिल दूर,कुछ कदम, चल कर तो देखो,अपने लिए ही सही,खुद को, बदल कर तो देखो। हर रिश्ता,हर शख्स ,बस तुम्हारा होगा,ये दिखावटी लिबाज,ये मुखोटा बदल कर तो देखो। न रहेगी जिंदगी से शिकायत तुमको,कई दिन से भूखे बच्चे की तरह,पल कर तो देखो। जिस मैं से तमाम दूरियां हो गयी हैं,अब,एक बार उसे,…

नहीं है मंजिल दूर,कुछ कदम, चल कर तो देखो,
अपने लिए ही सही,खुद को, बदल कर तो देखो।

हर रिश्ता,हर शख्स ,बस तुम्हारा होगा,
ये दिखावटी लिबाज,ये मुखोटा बदल कर तो देखो।

न रहेगी जिंदगी से शिकायत तुमको,
कई दिन से भूखे बच्चे की तरह,पल कर तो देखो।

जिस मैं से तमाम दूरियां हो गयी हैं,अब,
एक बार उसे, निगल कर तो देखो।

बहुत बदल गए हैं लोग यहां के अब,
अपने आप से, बाहर निकल कर तो देखो।

अंधेरे को मिटा दोगे तुम भी इस जहाँ के,
कभी दीपक की तरह जल कर तो देखो।

ये फूल,ये बहारें, ये नजारे,तेरे इंतजार में हैं,
घर के आंगन से बाहर टहल कर तो देखो।

                रमेश सेमवाल
                 उत्त्तराखण्ड

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