स्वच्छ भारत मिशन
एक कूड़ेदान की दास्तान
मेरा नाम कूड़ादान है। मैं एक संयुक्त परिवार का सदस्य हूँ। परिवार में छोटे-बड़े कई सदस्य हैं। जो रक्तदान, गोदान, विद्यादान, श्रमदान, भूदान व नैत्रदान आदि नामों से जाने जाते हैं। सभी का अलग-अलग कार्य है। इनमें से कुछ रोगियों की सेवा में तो कुछ शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। गौसेवा का भी कार्य है। मेरा सौभाग्य हैं कि मैं पूरे देश में फैली हुई गन्दगी को समेट कर देश को साफ सुथरा रखने का काम कर रहा हूँ।
मानव का इतिहास बहुत पुराना है। मनुष्य ने जब से समाज बनाकर रहना सीखा है तभी से मैं अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। पहले मेरा छोटा रुप था, किन्तु जनसंख्या की वृद्वि के साथ-साथ मेरा उपयोग भी बढ़ गया। मुझे मनुष्य मात्र की सेवा करने में आनन्द का अनुभव होता है। घर आँगन का कचरा तो नित्य प्रति समय पर प्राप्त कर लेना मेरा दैनिक कार्य ही है। घर गृहस्थी में खान-पान के कई आयोजन विशेष अवसरों पर होते रहते हैं तब भी मैं पीछे नहीं रहता। मैं चाहता हूँ कि आयोजनों पर होने वाला कचरा मुझे ही समर्पित करदंे तो सफाई भी रहेगी और लोगों की सफाई रखने की आदत भी बनेगी। शादी सगाई, जन्म दिवस, प्रीतिभोज के मौके पर सैंकड़ो लोग सामूहिक भोज में सम्मिलित होते हैं तो मेरा आकार -प्रकार बदल जाता है। वहाँ का सारा कूड़ा समेटने की जिज्ञासा बनी रहती है। समझदार लोग मुझे पूरा सहयोग देते हैं।
कभी आप पार्क में गये हो, सड़क मार्ग से यात्रा की हो, कोई पर्यटन का स्थान हो, बाग बगीचा हो, वहाँ पर भी मैं मिल जाता हूंँ। अपनी सेवाएं वहाँ पर भी मैं नियमित देकर हमारे प्रधानमन्त्री जी का स्वच्छ भारत मिशन का संकल्प पूरा करने में जी जान से सहयोग करता हूँ। पान गुटका, तम्बाकू तथा सुपारी खाने वालों को तो मेरा पूरा ध्यान रहता है। कभी-कभी उन्हें पाऊच को सड़क पर इधर -उधर फैंकते देखता हूँ तो शर्म से माथा नीचा हो जाता है। सोचता हूँ कि भारत देश के ये नागरिक सफाई के महत्व को क्यों नहीं समझ रहे हैं उन्हंे मालूम है कि मैं उनके नजदीक ही उनकी सेवा में प्रस्तुत हूँ फिर भी उन्हंे कौन कहे?
आप सभी से मेरा अनुरोध है कि जब कभी आप किसी जुलुस में हों। शोभा यात्रा निकाल रहे हों, बारात की निकासी हो, उस समय बड़ी मान मनुहार के साथ आपको खाद्य पदार्थ एवं पेय पदार्थ, स्वागतार्थ परोसे जाते हैं उनके अपशिष्टों को आप जहाँ का तहाँ डालते रहते हैं। आप क्यों नही सोचते कि इससे देश गंदा हो रहा है। थोड़ा तो विचार करें। आयोजकों ने मेरी व्यवस्था कर रखी है और मुझ पर यह भी लिखा दिया हैं कि ‘‘ कृपया मेरा उपयोग करे ’’ फिर भी आप भूल जाते है। सोचिए, आपकी थोड़ी सी सजगता गंदगी से कई रोगों को बचा सकती है। सामूहिक आयोजन में तो बैनर, स्लोगन मोटे अक्षरों में लिखाने की व्यवस्था कर देता हूँ।
देश वासियों! मेरा आपसे विनम्र आग्रह है कि देश को साफ सुथरा रखने तथा स्वच्छता बनाये रखने के लिए समाज में बदलाव की आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक स्वच्छता का मूल्य समझ सके और सफाई के प्रति अपनी आस्था बना सके, इसके लिए विशेष अभियान की आवश्यकता है। हमारे जन नेता, प्रशासनिक अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, विद्यार्थी तथा शिक्षाकर्मियों ने मेरी भावना को समझा हैं और वे मेरा उपयोग भी करने लगे हैं। मैं यह भी चाहता हूँ कि कचरापात्र में ऐसी कोई अनुपयोगी सामग्री हो जिससे दैनिक उपयोग की सामग्री बन सके तो उसका अवश्य उपयोग करें। खाद बनाने में मेरा उपयोग हो सकता हैं। इंधन के रुप में भी मेरा उपयोग हो सकता है। विद्युत ऊर्जा के रुप में भी मेरा प्रयोग हो सकता है। अल्प लागत वाली काम की चीजें बनाने में काम भी आता हूँ। जो लोग सफाई के महत्व को नहीं समझ पाये हैं उन्हें गाँधीवादी तरीके से समझाकर स्वच्छता की धारा से जोड़ने का प्रयास किया जाए। मुझे याद है कि गाँधीजी ने स्वच्छता का महत्व समझकर मेरा सम्मान किया था। उनके आव्हान पर लाखों लोग शहर, कस्बे और गाँव की बस्तियों में विशेष रुप से जाकर साफ- सफाई करते, सड़कों और नालियों की सफाई करते, उस समय मुझे जो सम्मान मिला वह मैं भूल नहीं सकता।
सफाई स्वच्छता के अभाव में हमारे देश की छवि खराब रही है। अब हमारा सामूहिक दायित्व है कि देश को साफ सुथरा बनाने में सहयोग करें और स्वच्छ भारत की स्थापना करें। मुझे उन लोगों पर भी तरस आता है जो चोरी छिपे सड़कों को गन्दा करते हैं। दीवारों को पीक छिड़क कर गंदा करते हैं। मेरा उपयोग नहीं करने पर हमारी राष्ट्रीय छवि ऐसे भारतीय परिवार की है जो बड़े गर्व से अपना घर तो साफ करता है और गंदगी दरवाजे के बाहर फैंक देता है। क्या यही हैं नागरिक कर्तव्य? बोलो जवाब दो।
02 अक्टूबर 2014 को ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’ का शुभारम्भ हुआ था। तब मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। लोगों में जागृति अवश्य आई है। मेरा परिवार भी बड़ा होता जा रहा है। पहले से अधिक सेवा का लाभ मिल रहा है। मैं तो चाहता हूँ कि रोग का ईलाज करने की अपेक्षा रोग नहीं होने देना कहीं अच्छा है। सभी देशवासी ऐसा संकल्प ले सकंे तो देश गंदा नहीं होगा और गंदा करके उसे साफ करने की आवश्यकता भी नहीं होगी और साफ सफाई स्वच्छता का मेरा सपना साकार हो जायेगा।
मेरे दोस्त जापान में भी हैं। मेरे एक दोस्त ने लिखा है कि किसी देश से कुछ आदमियों का एक समूह जापान यात्रा पर आया था। यहाँ पर उन्होने एक विद्यालय को भी देखा जो उन्हें अच्छा लगा। उसके बाद कुछ केले खरीद कर गाड़ी में रखे। चलते हुए वे लोग केले खाते हुए छिलकों को बाहर सड़क पर डा़लते चले जा रहे थे। थोड़ी देर बाद उसी विद्यालय की छुट्टी हुई। विद्यार्थियों ने केले के छिलकों को सड़क पर देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उस देश में कभी ऐसा नहीं देखा गया। छात्रों ने केले के छिलकों को उठाकर अपने बस्तों में रख लिए और वहाँ पहुँच गये जहाँ उन लोगों की गाड़ी खड़ी हुई थी। बच्चों ने उन छिलकों को उन्हे सौंपतें हुए कहा कि ‘‘आप हमारे देश को गंदा क्यों कर रहे हैं।’’ इस देश में कचरे के लिए जगह-जगह कूड़ा-दान रखे हुए हैं। अब गंदगी नहीं फैलाये और गंदगी को कूड़ेदान में ही डाले समूह के सभी सदस्य शर्मिंदा हुए और एक नई सीख लेेकर आये। मुझे ऐसे बच्चों पर गर्व है जिन्हंे मेरा पूरा ध्यान है। चिकित्सा वालों ने तो मुझे बहुत सम्मान दिया है। अस्पतालों में विविध रंगों के कूड़ादानों का प्रयोग किया जाने लगा है। मरीजों की पट्टियाँ, काम आये इंजेक्शन, सीरिंज तथा खाली शीशीओं के लिए अलग-अलग रंग के कूड़ादान होने से कचरे की पहचान भी होती है। विद्यालय, रेल्वे स्टेशन, सिनेमाघर, बाग बगीचे सभी जगह कूड़ेदान की समुचित व्यवस्था हो जाए तो रोगों पर नियन्त्रण रहेगा।
मुझे आज भी उस शिक्षक का स्मरण हैं जो रोज प्रातः पाँच बजे घूमने जाया करता था। रास्ते मे स्कूल के पास सड़क के किनारे चाय की एक थड़ी थी। वहाँ सुबह बहुत से लोग चाय पीते और झूठी गिलासों को इधर-उधर ड़ालकर चले जाते थे। मक्खियाँ भिनभिनाती, मच्छर मण्डराते और आवारा पशु उन्हंे खाते रहते। यह सब देखकर वे दुखी हो जाते। चाय वाले को साफ सफाई रखने के लिए कहते रहे किन्तु उसके कान में जूं तक नहीं रेंगी। अन्त में एक दिन बड़े सवेरे वह शिक्षक अपने घर से एक कंटेनर ले आया और बिखरी हुई सारी चाय की गिलासों को उस कंटेनर में डालकर प्रांगण की सफाई कर दी। जब चाय वाला आया तो वहाँ की सफाई को देखकर बड़ा शर्मिंदा हुआ। यदि ऐसे आदर्श शिक्षक के समान ही प्रत्येक नागरिक स्वच्छता के प्रति आस्थावान व समर्पित हो सके तो हमारा देश कभी गंदा नहीं रहेगा और मेरा सपना भी साकार हो जायेगा। पर्यावरण दूषित नहीं होगा तो देश में बीमारियाँ भी नहीं फैलेगी और सभी स्वस्थ रहेंगे।
आपसे मेरा विनम्र अनुरोध है कि मुझे छिपाकर या ओट में नहीं रखें। सभी लोग आसानी से मुझे देख सकंे, ऐसा स्थान मुझे दीजिए। मुझे ढ़ककर रखेंगे तो गंदगी व बदबू बाहर नहीं फैलेगी और जब मैं भरा पूरा हो जाऊँ तो मेरे कचरे को यथा स्थान पहुंचादंे।
आपने मेरी दास्तान ध्यान से सुनी इसके लिए धन्यवाद! अब तो मिलते ही रहेंगे।
शंकर लाल माहेश्वरी
पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी
पोस्ट-आगूचा
जिला-भीलवाडा
राजस्थान
पिन- 311022
मो.. 09413781610