प्रेम मुस्काना नहीं तो , तुम कहो यह और क्या है ।
यदि नहीं है सार नारी , तो कहो यह और क्या है ।।
इन्द्र के भी बज्र को आदत है जिसकी झेलना ,
सिंह के पंजे से भी लड़ना लड़ाना खेलना ,
हैं वार क्या प्रतिवार क्या संघर्ष कर हँस ठेलना ,
निज लक्ष्य में तन छोड़ सारा आँख केवल देखना ,
पंखुड़ी की गन्ध में,पागल हुआ यह और क्या है ।
यदि नहीं है सार नारी , तो कहो यह और क्या है ।।
हर यती से जोड़ नाता शील का अनुकरण करता ,
आहुती दे प्राण की वह सौर्य का ही वरण करता ,
बूझता कोमल कली बन भ्रमर उसका हरण करता ,
शान्ति के ही वास्ते हर क्रान्ति का वह छरण करता ,
शूल को भी फूल करता हर समय यह और क्या है ।
यदि नहीं है सार नारी तो कहो यह और क्या है ।।
रामकरण साहू “सजल” बबेरू (बाँदा) उ०प्र०