मात कात्यायनी सदा, सुनती यहाँ पुकार।
प्रेम से सभी पूजते,
करते रहे सत्कार।।
धूप दीप कर आरती, रखते हैं आधार।
हलुआ पूड़ी भोग मे,
सभी करें तैयार।।
मात कात्यायनी करें,
कच्ची हल्दी गांठ।
शहद लगाएं भोग जो,
पाते सारे ठाठ।।
पूजन थाली को सजा,
जाते माता द्वार।
ढ़ोल नगाड़े हैं बजे,
माता के दरबार।।
कात्यायन ऋषि लाडली ,
कन्या थी वह नेक।
नाम पड़ा कात्यायनी,
शक्ति स्वरूपा टेक।।
पुष्पा निर्मल बेतिया बिहार