कविता पर कविता को
सोच रहा हूं मैं
उसके लिए शब्दों को
खोज रहा हूं मैं
गरिमा इसकी रखनी है
उलझ रहा हूं मैं
क्या इसकी कहानी है
समझ रहा हूं मैं
शब्दों को चुन-चुन कर
पिरो रहा हूं मैं
भाव जगे हैं अब जमकर
संजो रहा हूं मैं
शैली की अपनी महत्वता है
जान रहा हूं मैं
शब्दों को इसी शैली में
ढाल रहा हूं मैं
कविता पर कविता को
सोच रहा हूं मैं
उसके लिए शब्दों को
खोज रहा हूं मैं
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देवेश दीक्षित