जम्मू कश्मीर तेजी से बदल रहा है। कल तक प्रदेश में सत्ता की धुरी माने जाने वाली कांग्रेस अब हाशिए पर है। प्रदेश में बदले हालात और पार्टी में गुटबाजी और अंतर्कलह उसकी दुश्मन बन चुकी है। कुछ नेताओं के बगावती सुर और जनता से न जुड़ने के लिए रणनीति का अभाव इसकी परेशानी और बढ़ा रहे हैं। अब गुलाम नबी आजाद और उसके खेमे के बगावती सुर निश्चित तौर पर कांग्रेस को बड़ा झटका दे सकते हैं।
अब नेकां-पीडीपी की जूनियर बन गई कांग्रेस: जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद कांग्रेस की नीति ने उसे नेकां और पीडीपी की सहयोगी पार्टी बनाकर छोड़ दिया। उसके कई नेता दबे मुंह इस बात को स्वीकारते हैं। शायद यही वजह है कि जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव में कांग्रेस प्रदेश के 20 जिलों में एक भी जिले में अपना चेयरमैन नहीं बना पाई है। अनंतनाग और बारामुला नगर परिषद पर कांग्रेस काबिज थी, लेकिन बीते छह माह के दौरान दोनों नगर परिषद के चेयरमैन कांग्रेस छोड़ समर्थकों संग अपनी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में वह न कश्मीर में पकड़ बना पाई और जम्मू भी खो दिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लोकसभा चुनाव हारे ही, उनका पुत्र डीडीसी चुनावों में अपने ही घर में हार गया।
सोज ने छेड़ी थी कश्मीर तान, अब भी वही बज रहा: प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी 1990 से ही तेज हो गई थी। यह कभी कश्मीर बनाम जम्मू होती तो कभी जम्मू कश्मीर बनाम हाईकमान होती गई। नेशनल कांफ्रेंस छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए प्रो सैफुद्दीन सोज ने प्रदेश प्रमुख बनने के बाद कांग्रेस की नीतियों को पूरी तरह कश्मीर केंद्रित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एक-एक कर जम्मू के नेता हो गए किनारे: कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश में किसी तरह स्थिति को संभाला, लेकिन 2009 में पीरजादा मोहम्मद सईद और फिर 2015 में गुलाम अहमद (जीए) मीर के प्रदेश कांग्रेस प्रमुख बनने के साथ यह टकराव और बढ़ गया। गुलचैन सिंह चाढ़क, अब्दुल गनी वकील, प्रेम सागर अजीज ने जीए मीर के खिलाफ खुलेआम बगावत का झंडा बुलंद किया। इन नेताओं को कांग्रेस ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा और उस्मान मजीद ने जीए मीर पर प्रदेश कांग्रेस की निधि में घोटाले का आरोप लगाया। पूर्व मंत्री एजाज खान और पूर्व विधायक मुमताज खान भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। शाम लाल भाजपा में हैं, जबकि एजाज व मुमताज और उस्मान जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रम मल्होत्रा, फारूक अंद्राबी भी अपनी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तारांचद, पूर्व मंत्री ताज मोहिउदीन, जुगल किशोर, मनोहर लाल शर्मा, जीएम सरूरी के अलावा पूर्व एमएलसी जीएन मोंगा समेत करीब एक दर्जन वरिष्ठ कांग्रेसी भी बगावत का झंडा लेकर गुलाम नबी आजाद के साथ खड़े हो चुके हैं।
मौके गंवाती रही कांग्रेस: कश्मीर के जानकार रशीद राही ने कहा कि कांग्रेस ने भी जम्मू कश्मीर के लोगों की उम्मीदों का उसी तरह से गला घोंटा, जिस तरह से कुर्सी के लालच में नेकां और पीडीपी ने। उसके पास नेकां का मजबूत विकल्प देने के कई अवसर थे, उसने हमेशा उन्हेंं नकारा। आज पीपुल्स कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, पैंथर्स पार्टी जैसे छोटे दलों से भी कांग्रेस पीछे नजर आती है। अगर कांग्रेस यहां नेकां और पीडीपी के तुष्टिकरण के बजाय आम कश्मीरियों को सशक्त बनाने के लिए काम करती तो यह स्थिति न होती।
- गुलाम नबी आजाद के साथ खड़े होने से एक फायदा हुआ है, हमारी बात आज हाईकमान तक पहुंच चुकी है। हमें यहां किसी की बी पार्टी बनने के बजाय अपनी नीतियों पर सियासत करनी चाहिए। कांग्रेस यहां नेकां, पीडीपी या भाजपा की सियासत देखकर एजेंडा तय करेगी तो कहां आगे बढ़ पाएगी। -जुगल किशोर, पूर्व मंत्री
जम्मू कश्मीर और कांग्रेस: कांग्रेस ने भी जम्मू कश्मीर को बिना किसी दल के साथ गठजोड़ किए दो मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद सादिक और सैयद मीर कासिम दिए हैं। 29 फरवरी, 1964 से लेकर 25 फरवरी 1975 तक कांग्रेस की ही जम्मू कश्मीर में सरकार थी। इंदिरा-शेख समझौते के बाद कांग्रेस ने नेकां के साथ गठजोड़ किया। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बन गए। उसके बाद कांग्रेस के लिए जम्मू कश्मीर में सत्ता में वापसी मुश्किल हो गई थी। 1984 में कांग्रेस ने नेकां में विभाजन के समय जीएम शाह का साथ दिया और उनकी सरकार में सहयोग किया। इसके बाद कांग्रेस कभी नेकां और कभी पीडीपी के साथ सरकार में सहयोगी रही। मुफ्ती सईद पुराने कांग्रेसी थे। उन्होंने कांग्रेस छोड़कर ही पीडीपी का गठन किया था। वर्ष 2002 का विधानसभा चुनाव गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में लड़ा गया था। उन्हें 2005 में पीडीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला। 2014 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने मोदी लहर के बीच 12 सीटें जीती। 2019 के बाद कांग्रेस की हालत बद से बदतर होती चली गई।