कलमकार बन जाऊँ

हमें मिले तुम्हारा प्यारना चाहिये हीरे की हारमेरी लेखनी में हो धारबन जाऊँ मैं कलमकार।तेरी रूप अनोखी है माँउर्वरा वसुन्धरा में लेटी हैलक्ष्मी शारदा कहलाती हैअल्पज्ञ मस्तिष्क हमारी येबने वीणा की सुमधुर धारप्रेम हमारी कंठों की हारहमें मिले तुम्हारा प्यारबन जाऊँ मैं कलम कारलेखनी से सजाऊँ भालहो शक्ति ऐसी कमालसीखने की है हमारी भूखकामयाबी की…

डॉ.इन्दु कुमारी


हमें मिले तुम्हारा प्यार
ना चाहिये हीरे की हार
मेरी लेखनी में हो धार
बन जाऊँ मैं कलमकार।
तेरी रूप अनोखी है माँ
उर्वरा वसुन्धरा में लेटी है
लक्ष्मी शारदा कहलाती है
अल्पज्ञ मस्तिष्क हमारी ये
बने वीणा की सुमधुर धार
प्रेम हमारी कंठों की हार
हमें मिले तुम्हारा प्यार
बन जाऊँ मैं कलम कार
लेखनी से सजाऊँ भाल
हो शक्ति ऐसी कमाल
सीखने की है हमारी भूख
कामयाबी की है ललक
प्रयत्न हमारा है सारथी
जोश जज्बा ताकत मेरी
बसाऊँ शब्दों भरी संसार
सौन्दर्य हो हमारी श्रृंगार
बन जाऊँ मैं कलम कार।
डाॅ. इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार

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