कभी हालात लिखता हूँ कभी जज़्बात लिखता हूँ,
जो बातें दिल में होती हैं वही मैं बात लिखता हूँ!
मैं खुद को भूल जाता हूँ कभी घर की ज़रूरत में,
मैं जिन लम्हों में रोया था वही लम्हात लिखता हूँ,
कोई उल्फ़त हो, ग़म हो या कोई उनसे शिकायत हो,
जो बातें कह नहीं पाता वो अहसासात लिखता हूँ!
छुपाया सबसे है जिसको मेरी पहली मोहब्बत है,
वो दिन को रात कहदे मैं भी दिन को रात लिखता हूँ!
बड़ा मसरूफ रहता हूँ मैं दिन में लिख नहीं पता,
मगर जब रात होती है मैं सारी रात लिखता हूँ!
ई. प्रशां
कभी हालात लिखता हूँ कभी जज़्बात लिखता हूँ,
जो बातें दिल में होती हैं वही मैं बात लिखता हूँ!
ई.प्रशांत कुमार
नवगछिया ,भागलपुर
बिहार