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एक अच्छा रिश्ता निभाने के लिए सबसे पहले अच्छी सोच होनी चाहिए। उसके बाद श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धा से समर्पण का विकास होता है। समर्पण से विश्वास होता है। विश्वास से प्रेम की उपज़ होती है। प्रेम का पर्याय विश्वास है। जहां विश्वास है वहां प्रेम है। रिश्तों में मर्यादित शब्दों एवं अनुशासन की भी जरूरत होती है। पर विचार स्वतंत्र एवं भयमुक्त हो। उसके बाद ही रिश्तों की नींव मजबूत होती है। रिश्तों में शक के बजाय गर्व होनी चाहिए। छोटी-छोटी गलतियों को टालना सीखें। अगर सामने वाला अनजाने में कोई ग़लती भी कर बैठा तो क्षमा कर दें और उसे सही राह दिखायें। एक ग़लती से कोई हमेशा के लिए गलत व्यक्ति नहीं होता। रिश्तों में एक दूसरे के भावनाओं को समझें। उसकी एक गलती से सारी दुनिया नफ़रत करने लगे और दुनिया को देखकर हम भी उससे नफ़रत करने लगे तो अपने ओर पराये में क्या फ़र्क है? बस कुछ चीज़ों को समझने पर रिश्तों की नींव काफ़ी मज़बूत होती है।
आज़ बस यही चीज़ की कमी है जिसकी वजह से दोस्ती या शादी के बंधन ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाते। रिश्तों में नि: स्वार्थ भाव होनी चाहिए व्यवसाय नहीं। चाहे वह रिश्ते माता-पिता,भाई-बहन, दोस्त,पति-पत्नी इत्यादि का हो। मैं किन्हीं को व्यक्तिगत नहीं कहा।बस अपना विचार प्रकट किया हूं।🙏
प्रकाश ✍️