माता कुष्मांडा वंदना
(माता रानी के चतुर्थ रूप की अराधना)
(माता कूष्माण्डा के दिव्य दर्शन)
“सभी मित्रों, साथियों, प्यारे बच्चों एवं भक्त जनों को शारदीय नवरात्रि महोत्सव पर ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं अशेष बधाईयां।“
पंक्तियां
“शारदीय नवरात्रि महोत्सव की धूम मची, सजा है मैया का धाम,
माता कूष्मांडा विराजमान, भक्तजन कर रहे कोटि कोटि प्रणाम।“
मैया कूष्माण्डा तुम आदिशक्ति हो, सुंदर सृष्टि की,
है यह सारा ब्रह्मांड आदिकाल से तुम्हारे नाम।
दिव्य प्रकाश तेरा, दसों दिशाओं में फैल रहा है,
तेरा रचा जग है, कांतिमान रखना तेरा काम।
सूर्य मंडल निवास तेरा, तेरी आभा सूर्य समान।
सिंह सवार अष्टभुजा देवी, कोटि कोटि प्रणाम।“
आराधना गीत
देखो देखो भक्तों, रूत आज निराली आई है,
सिंहसवार कूष्माण्डा रूप,मां शेरावाली आई है।
प्रभा संग आज, जग चमकाने वाली आई है,
माता कूष्माण्डा देवी, भाग्य जगानेवाली आई है।
देखो देखो भक्तों………..
चमक रही तलवार हाथ में, गले मोती की माला,
धूप से ऊपर रूप मां का, चहु ओर फैला उजाला।
जो चाहो मांग लो भक्तों, खुला है मां का दरबार,
सबकी तरह मेरी भी झोली, खाली आई है।
देखो देखो भक्तों……………
नवरात्र का दिन आज चौथा, मां कूष्मांडा है छाई,
गुड़हल फूल से सजाओ मां को, घड़ी वह आई।
सोने की पायल मां कूष्माण्डा के पावों में पहनाओ,
चरणों में मां के, महाबर की लाली निराली आई है।
देखो देखो भक्तों………………
अनहोनी के भाग्य में मित्रो, अब रोना ही रोना,
भक्तों की झोली में है, हीरे मोती व चांदी सोना।
बहुत हो चुका है अब, था जो कुछ बुरा होना,
मैया के स्वागत में, घड़ी ये मतवाली आई है?
देखो देखो भक्तों………………..
“या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।“
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)