छोड़ो धनन्जय मोह अब आगे बढ़ो ,
इस सत्यता संग वीरता को तुम गढ़ो ।
अब द्रोपदी के केश साड़ी की कसम ,
तुम भ्रातता को छोड़ छाती पर चढ़ो ।।
कुरुवंश की जिसने गंवाई लाज है ,
उनकी नज़र में एक केवल ताज है ,
भीष्म द्रोणाचार्य द्रोणी साथ सकुनी ,
अब हस्तिनापुर ही निशाना आज है ,
छोड़कर काका भतीजावाद अपने ,
अब वास्ते पुरुषार्थ अर्जुन तुम लड़ो ।
छोड़ो धनन्जय मोह अब आगे बढ़ो ,
इस सत्यता संग वीरता को तुम गढ़ो ।।
शक्ती भुजाओं की तुम्हारे खो गई ,
शौर्य साहस की सुबह क्या सो गई ,
संग्राम में शिव से लड़ा गांडीवधारी ,
संधाननें पर वाण की हद हो गई ,
यश यहीं अपयश यहीं यह छोड़ दो ,
इस क्रूरता के शिखर में हँसकर चढ़ो ।
छोड़ो धनन्जय मोह अब आगे बढ़ो ,
इस सत्यता संग वीरता को तुम गढ़ो ।।
है राज्य क्या राज़ी नहीं जो साथ में ,
अब पाँच गाँवो की ख़बर ना हाथ में ,
दे सुई की जो नोक भर धरती नहीं ,
कोई रखे पद रज कहाँ फिर माथ में ,
अब छोड़कर ममता भरा स्नेह उर से ,
तुम कौन्तके इतिहास वाणों से गढ़ों ।
छोड़ो धनन्जय मोह अब आगे बढ़ो ,
इस सत्यता संग वीरता को तुम गढ़ो ।।
रामकरण साहू”सजल”बबेरू (बाँदा) उ०प्र०