आँखे चार करूँ

मैं अपनी वफ़ाओं की बात क्या करूँख्वाहिशें जला कर साबित क्या करूँ इस दुनियां में किस्मत से हमारे हीसब दुश्मन निकले फिर में क्या करूँ मेरी जुबाँ पर कोई भरोसा नही करताकिस्से ।सुनाकर वक़्त क्यूँ बर्बाद करूँ जिन्हें जाना था उन्हें जानें दिया फिरमुड़ कर उसका इंतज़ार क्यूँ करूँ अच्छे दिन भी बुरी तरह से…

मैं अपनी वफ़ाओं की बात क्या करूँ
ख्वाहिशें जला कर साबित क्या करूँ

इस दुनियां में किस्मत से हमारे ही
सब दुश्मन निकले फिर में क्या करूँ

मेरी जुबाँ पर कोई भरोसा नही करता
किस्से ।सुनाकर वक़्त क्यूँ बर्बाद करूँ

जिन्हें जाना था उन्हें जानें दिया फिर
मुड़ कर उसका इंतज़ार क्यूँ करूँ

अच्छे दिन भी बुरी तरह से गुज़र रह
है फिर ज़िंदगी से क्यों आँखे चार करूँ

   नीक राजपूत 

+919898693535

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